ब्लॉगसेतु

ज्योति  देहलीवाल
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"दादी माँ, दादी माँ...मैं भी आपके साथ चलता हूं सब्जी खरीदने।" दस साल के अनिल ने कहा। "नहीं बेटा, बाहर कोरोना है!" "अब तो सब अनलॉक हो रहा है। देखों न रास्ते पर भी कितनी भीड़ है। प्लीज़ मुझे ले चलो न। कितने महीने हो गए मुझे आपके साथ बाजार गए। मैं मास्क लगाकर...
Bhavana Lalwani
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"दो सदियों के संगम पर मिलने आये हैं, एक समय लेकिन दो सदियां , दो सदियां ". "तुम गाने भी इतने बोरिंग और डिप्रेसिंग किस्म के गाती  हो कि  मेरा मन होता है  कि अभी यहां से भाग जाऊं !!""क्यों, इतना अच्छा गाना है।  तुम्हें क्य...
Bhavana Lalwani
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"ऐ मन्नू, मुझे देर हो जाएगी,  तू ये पैकेट रख।  मुझे शाम को दे देना। "" क्या है इसमें ? चूड़ियां !!!  ये औरतों की चीज़ें मैं कहाँ रखूं ? तू ले जा। ""मुझे देर हो रही ऑफिस के लिए , वहाँ ड्यूटी पर कहाँ रखूंगी।  तू रख, शाम को बस स्टैंड पर पकड़ा देना।&nb...
Bhavana Lalwani
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 "क्योंकि, मैं तुम्हारा  लौह आवरण उतरते देख रहा हूँ। "'और तुम खुश हो रहे हो ?"" नहीं, लेकिन इतना अंदाज़ा नहीं लगाया था मैंने।""किस बात  का अंदाज़ा ?""तो क्या अंदाज़ा था तुम्हारा ?""जो भी था, जाने दो। ""मेरे ख्याल से एक एक कंकर  फेंकने के बजाय...
Bhavana Lalwani
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अपने दोनों हथेलियों  पर अपना सर टिकाये, कोहनियां मेज़ पर  चिपकी हुई ,  प्रतीक  शायद आराम कर रहा है।  पास में परदे के पीछे से एक रसोइया कभी कभी इधर दुकान में झाँक लेता है , दोपहर होने आई है  लेकिन यूँही खाली बैठे हैं।  वैसे ये...
Bhavana Lalwani
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दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट  "फ्लाइट  आने में अभी और कितनी देर है ?" उसने अपने आप से पूछा। सिक्योरिटी चेक का कॉल आने पर थोड़ी राहत महसूस हुई।  अचानक ये मुल्क, ये खूबसूरत आसमान छूता,  सपनों की दुनिया जैसा ये शहर ,  अब उसके लिए बिलकुल अजनबी ह...
Bhavana Lalwani
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कहानियां लिखे एक  अरसा बीत गया है. पहले कहानियां  अपने आप दिमाग की फैक्ट्री से बनकर आती और  यहां की बोर्ड पर टाइप हो जातीं। अब फैक्ट्री बंद है और चालू  होने के ऐसे कोई आसार भी  नहीं दिखते। फिर भी यूँही रस्ते चलते, घूमते ...
विजय कुमार सप्पत्ति
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डायल कुमार फॉर किलिंग : १४ जुलाई :उस दिन दोपहर से ही बारिश हो रही थी. उन दिनों मेरा मूड वैसे ही खराब रहता था. कोई नया काम नहीं मिल रहा था. रुपये पैसो के मामले में मैं परेशान था. मेरा जीवन भी क्या बेकार सा जीवन था. मैं लेखक था, और पूरी तरह से फ्लॉप था. करियर के प्रा...
विजय कुमार सप्पत्ति
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क्या तुम्हे सब याद है - उसने मुझसे पुछा हां ! मैंने कहा .एक गहरी सांस लेकर मैंने आगे कहा- वो भी जो हुआ और वो भी जो नहीं हुआउसने अपनी भीगी आँखों से मुझे देखामैंने उसकी तरफ से मुड़कर खुद की आँखों को पोछा ! © विजय
विजय कुमार सप्पत्ति
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कल से इस छोटे से शहर में दंगे हो रहे थे. कर्फ्यू लगा हुआ था. घर, दूकान सब कुछ बंद थे. लोग अपने अपने घरो में दुबके हुए थे. किसी की हिम्मत नहीं थी कि बाहर निकले. पुलिस सडको पर थी.ये शहर छोटा सा था, पर हर ६ – ८ महीने में शहर में दंगा हो जाता था. हिन्दू और मुसलमान दोनो...