– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित” भारत के आज जन-जन फूले नहीं समातेभारत के आज कण-कण फूले नहीं समातेभारत का कोना-कोना है आज जगमगायागणतंत्र पर्व आया , गणतंत्र पर्व आया.माँ हिंद के जलधि ने पावन चरण पखारेमंडर...
पोस्ट लेवल : "हिंदी काव्य संचय – जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”"

0
जनकवि स्व.कोदूराम “दलित”गरीबी ! तू न यहाँ से जाएक बात मेरी सुन ,पगलीबैठ यहाँ पर आ,गरीबी तू न यहाँ से जा.....चली जायेगी तू यदि तो दीनों के दिन फिर जायेंगेमजदूर-किसान सुखी बनकर गुलछर्रे खूब उड़ायेंगेफिर कौन करेगा पूँजीपतियों ,की इतनी परवाहगरीबी तू न यहाँ से जा.....ब...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित” दोहा जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूलतुम्हें चढ़ाते आज हम , श्रद्धा के दो फूल.उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धामविश्व...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”गो-वध बंद करो जल्दी अब, गो-वध बंद करोभाई ! इस स्वतंत्र भारत में, गो-वध बंद करो.महापुरुष उस बाल कृष्ण का, याद करो तुम गोचारणनाम पड़ा गोपाल कृष्ण का, याद करो तुम किस कारणमाखन-चोर उसे कहते हो, याद करो तुम किस कारणजग-सिर-मौर उसे कहते हो, याद...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”पराधीन रहकर सरकस का शेर नित्य खाता है कोड़ेपराधीन रहकर बेचारेबोझा ढोते हाथी-घोड़े.माता – पिता छुड़ा, पिंजरे मेंरखा गया नन्हा –सा तोतावह स्वतंत्र उड़ते तोतों कोदेख सदा मन ही मन रोता.चाहे पशु हो, चाहे पंछीपरवशता कब , किसको भायीकहने का मतलब यह...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”जो अपने सारे सुख तज करजन-हित करने में जुट जावेंदूर विषमतायें कर - कर केजो समाज में समता लावेंजन-जागरण ध्येय रख अपनाघर-घर जाकर अलख जगावेंउनके अनुगामी बन कर हमराह उन्हीं की चलते जावें.लहू-पसीना औंटा करकेखेतों में अनाज उपजावेंजो खदान-का...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित”सरल, सुबोध, सरस, अति सुंदर, लगती प्यारी-प्यारी हैदेवनागरी लिपि जिसकी, सारी लिपियों से न्यारी है.ऋषि-प्रणीत संस्कृत भाषा, जिस भाषा की महतारी हैवह हिंदी भाषा भारत के लिये परम-हितकारी है.सहती आई जो सदियों से, संकट भारी-भारी हैजीवित रही किंतु...

0
-जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित” गुरु, पितु, मातु, सुजन,भगवान, ये पाँचों हैं पूज्य महानगुरु का है सर्वोच्च स्थान , गुरु है सकल गुणों की खान.कर अज्ञान तिमिर का नाश, दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाशरखता गुरु को सदा ...

0
– जनकवि स्व.कोदूराम ”दलित” कवि पैदा होकर आता है होती कवियों की खान नहींकविता करना आसान नहीं.कविता कर सके सूर तब , जब अपनी दोनों आँखें फोड़ीकविता कर सके संत तुलसी , जब अपनी प्रिय रत्ना छोड़ीकविता कर सके कबीर कि जब झीनी-झीनी चादर ओढ़ीदे गये जगत को अमर काव्य , जब...