बहुत आसान है फेंकना एक कंकड़ शब्द का और कर देना पैदालहरें अशांति कीअंतस के शांत जल में।बिखरी हुई अशांत लहरेंयद्यपि हो जातीं शांत समय के साथ,लेकिन कितना कठिन हैलगाना अनुमान गहराई काजहाँ देकर गया चोटवह फेंका हुआ कंकड़ झील में।...©कैलाश शर्मा
पोस्ट लेवल : "Kashish-My Poetry"

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कुछ दर्द अभी तो सहने हैं,कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।मत हार अभी मांगो खुद से,मरुधर में बोने सपने हैं।बहने दो नयनों से यमुना,यादों को ताज़ा रखने हैं।नींद दूर है इन आंखों से,कैसे सपने अब सजने हैं।बहुत बचा कहने को तुम से,गर सुन पाओ, वह कहने हैं।कुछ नहीं शिकायत तुमने की,यह...

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जब भी पीछे मुड़कर देखाकम हो गयी गति कदमों की,जितना गंवाया समयबार बार पीछे देखने मेंमंज़िल हो गयी उतनी ही दूर व्यर्थ की आशा में।****बदल जाते हैं शब्दों के अर्थव्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थअगर समझ पाओ तो।****झुलसते अल्फाज़,कसमसाते अ...

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बरस गया सावन तो क्या है, मन का आँगन प्यासा है।एक बार फिर तुम मिल जाओ, केवल यह अभिलाषा है।अपनी अपनी राह चलें हम,शायद नियति हमारी होगी।मिल कर दूर सदा को होना,विधि की यही लकीरें होंगी।इंतज़ार के हर एक पल ने, बिखरा दिए स्वप्न आँखों के,रिक्त हुए हैं अश्रु नयन के, मन में...

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मत बांटो ज़िंदगीदिन, महीनों व सालों में,पास है केवल यह पलजियो यह लम्हाएक उम्र की तरह।****रिस गयी अश्क़ों मेंरिश्तों की हरारत,ढो रहे हैं कंधों परबोझ बेज़ान रिश्तों का।****एक मौनएक अनिर्णयएक गलत मोड़कर देता सृजितएक श्रंखलाअवांछित परिणामों की,भोगते जिन्हें अनचाहेजीवन पर्य...

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करीने से सज़ी कब ज़िंदगी है,यहां जो भी मिले वह ज़िंदगी है।सदा साथ रहती कब चांदनी है,अँधेरे से सदा अब बंदगी है।हमारी ज़िंदगी कब थी हमारी,पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है।नहीं है नज़र आती साफ़ नीयत,जहां देखता हूँ बस गंदगी है।दिखाओगी झूठे सपने कब तक,सजे फिर कब है बिखर ज़िंदगी है।....

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जियो हर पल कोएक पल की तरहसम्पूर्ण अपने आप में,न जुड़ा है कल सेन जुड़ेगा कल से। ***काश होता जीवनकैक्टस पौधे जैसा,अप्रभावितधूप पानी स्नेह से,खिलता जिसका फूलतप्त मरुथल मेंदूर स्वार्थी नज़रों से|***दुहराता है इतिहासकेवल उनके लिएजो रखते नज़र इतिहास पर।जो चलते हैं साथ पकड़ उं...

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नहीं चल पाता सत्यआज अपने पैरों पर,वक़्त ने कर दिया मज़बूरपकड़ कर चलने कोउंगली असत्य की।***चलते नहीं साथ साथहमारे दो पैर भीएक बढ़ता आगे दूसरा रह जाता पीछे,क्यूँ हो फ़िर शिकायतजब न दे कोई साथ जीवन के सफ़र में।***ढूँढते प्यार हर मुमकिन कोने मेंपाते हर कोना खालीऔर बैठ ज...

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फंस जाते जब शब्द भावनाओं के अंधड़ मेंऔर रुक जाते कहीं जुबां पर आ कर,ज़िंदगी ले लेती एक नया मोड़।सुनसान पलों मेंजब भी झांकता पीछे,पाता हूँ खड़े वे रुके हुए शब्द जो भटक रहे हैंआज़ भी आँधी में,तलाशते वह मंज़िलजो खो गयी कहीं पीछे।...©कैलाश शर्मा

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जग में जब सुनिश्चितकेवल जन्म और मृत्युक्यों कर देते विस्मृतआदि और अंत को,हो जाते लिप्त अंतराल में केवल उन कृत्यों में जो देते क्षणिक सुखऔर भूल जाते उद्देश्य इस जग में आने का।बहुत है अंतर ज़िंदगी गुज़ारनेऔर ज़िंदगी जीने में,रह जाती अनज़ान ज़िंदगी कभी...