कलम से ज़ुल्म की कलाई मरोड़ना उन्हें बाखूबी आता था आता था कोरोना ने हमसे बहुत ख़ास ख़ास लोग छीन लिए। शायरी, सियासत, कला, फ़िल्में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जिसमें से कोई न कोई घर सूना न हुआ हो। इसी दुखद कड़ी में एक और नाम है जना...
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85 वर्ष, समर्पित कम्युनिस्ट परिवारफेसबुक: 27 अगस्त 2018: (कामरेड स्क्रीन ब्यूरो):: बहुत बार हालात विपरीत बने। बहुत बार सख्तियों के युग आये लेकिन कम्युनिस्ट हर बार मजबूत होते गए। संख्या भले ही कम हुई हो लेकिन कभी भी कोई डगमगाया नहीं। न किसी लालच के सामने झुका न...