जाडा इस बार अपने पूरे जोर पर था। पिछले तीन दिन से बारिश थी कि थमने का नाम ही न लेती थी। मगर गरीब के लिये क्या सर्दी क्या गरमी। काम न करे तो खाये क्या? बारिश में भीगने के कारण सर्दी बुधिया की हड्डियों तक जा घुसी थी। खांसती खखारती चूल्हे में रोटियां सेक रही थी, और का...
पोस्ट लेवल : "childhood"

0
जीवन की आपाधापी मेंबरसों के आने जाने मेंबहुत कुछ बदलता है लेकिनजो नही बदलता, वो बचपन है बदल जाते है, रंग खुशी केबदल जाते है, संग सभी के बदल जाते है, चेहरे मोहरेबदल जाते है, मन भी थोडेमौसम के आने जाने मेंजमानों के गुजर जाने मेंदिन रात बदलते है लेकिन जो नही बदल...

0
नमस्कार, स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर| "मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी| आज हम लेकर आये है अशोक बाबू माहौर जी की सुन्दर कविता "बचपन"| आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचनाओं का आनंद ले स...

0
जाने कब कैसे बदलेअपने, रिश्तेदारों मेंप्यार मोहब्बत बदल गयादेखो कैसे व्यवहारों मेंछोटी छोटी बातों परजिनसे कल तक लडते थेमार पीट झगडे करके भीसंग घूमते खाते खेलते थेजीवन चक्र कुछ यूं घूमाहम आ बैठे नातेदारों मेंप्यार मोहब्बत बदल गयादेखो कैसे व्यवहारों मेंझूठ मूठ के घर...

0
दिल में एक अजीब सी कश-म-कश और घुटन सी रहती हैमन में भी अशांत समंदर सी लहरे उठती रहती हैंदिन में सो नहीं सकता और रात को बेचैनी सोने न देतीआंखें बंद करता हूं तो एक अजीब सी उधेड़बुन शुरु होती हैदिल जोरों से धड़कता जाता है और हथेलियों पर चुभन सी होती हैआंखें खोलता हूं तो...

0
किताबेंकहने को कुछ नही कहतीमगर सिखा जाती है जिन्दगीकिताबेंजो जाती थीकभी बस्ते मेंमेरे साथ मेरे स्कूलकिताबेंजिन्हे सजाते थे कभी बासी कागज सेकभी रंगीन मरकरी ब्रेड के कवर सेऔर कभी टाइम्स इंडिया के ग्लेस्ड पेपर सेकिताबेंजिनपर लगा करकोई सुन्दर सी नेमस्लिपऔर फि...

0
यह फोटो यूट्यूब से ली गयी हैभारतीय टीवी क्षेत्र में रियलिटी के नाम जो फूहड़ता परोसी जा रही है उससे आप भली भांति परिचित होंगे खासकर बच्चों के रियलिटी शोज में जो कुछ दिखाया जा रहा है वह बेहद शर्मनाक है। पिछले दिनों मैं बच्चों से संबंधित रियलिटी शो "सबसे बड़ा कलाकर" द...

0
घर आंगन छोड के जाना, कब अच्छा लगता हैआँखों से आँसू छलकाना, कब अच्छा लगता हैरोटी की मजबूरी, अक्सर छुडवा देती अपना देशपराये देश में व्यापार फैलाना कब अच्छा लगता हैमाँ के हाथों की खाये बिना, बस पेट ही भरता हैऑडर देकर सीमित खाना, कब अच्छा लगता हैबेजान रंगी्न शहरों में,...

0
"Wah Re Bchapan, Kaash Tum Laut Aao"yaad aataa hai wo bachpan,jab khushiyan kitni choti thi, baag me titli ko pakad hansnaa, taare todne jitnaa khush hote the, paani me khud ko hi bhigo kar, khud hi dar jaayaa karte the, wo dhukh bhi kitne pyaare the,...

0
Childhood fragranceThe sweet fragrance of The carefree world of ChildhoodRemains hiddenUntil one is a grown adultTied in innumerable Knots of desires and necessities When even a carefree Sound sleep looks distantOne is left withNo other choiceExcept drowning onesel...