It has been a long time since I have preserved you in a corner of my heart. Today, I am bidding you a Goodbye. Goodbye my dear ... what shall I call you ??? I don't have any name for you; any title, not even a nickname . I have nothing to address you. If it ha...
पोस्ट लेवल : "memoir"

0
खरगोन, मेरा ननिहाल। उसी शहर में मेरी मम्मी का भी ननिहाल है जिसे सब लोग सरमण्डल का बाड़ा कहते हैं। बाड़ा अंग्रेजों के ज़माने की कोई सरकारी इमारत थी शायद। बीचों-बीच एक बड़ी इमारत थी और चारों तरफ चार बाड़े थे। दो आजू-बाजू, एक सामने और एक पीछे। चारों बाड़ों में क...

0
नाटक तो भावनाओं का खेल है – इब्राहिम अल्काज़ी– रवीन्द्र त्रिपाठीइब्राहिम अल्काज़ी (1925 - 2020) से मेरा परिचय बहुत कम था। उनसे कई बार मिला लेकिन ढंग की बातचीत सिर्फ़ दो बार हुई। एक बार तब जब वे 1991 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (संक्षिप्त रूप में रानावि य...

0
इस आखिरी किस्त के साथ विनोद भारद्वाज जी की किताब यादनामा पूरी हो गयी है। इसका उप-नाम है, लॉकडाउन डायरी, कुछ नोट्स, कुछ यादें। जल्दी ही किताब भी सामने आयेगी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});न्यू यॉर्क की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मर...

0
विनोद जी अपने संस्मरणों में, इसके पिछले लेखन (जापान वाले 'साकुरा की यादें') से, खूबसूरत कवि-से हो गए हैं! उनके इस सौन्दर्य भरे परिवर्तन से उनको पढ़ना अलग किस्म का रोचक हो गया है. आनंद उठाइए... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादकलेखक के लिए उपेक्षा खराब है तो उसको ज्यादा व...

0
इरफ़ान ख़ान पर लिखा, विविध भारती के उद्घोषक, फिल्मों के गहरे जानकार, लेखक यूनस ख़ान का यह लेख इरफ़ान ख़ान की जीवनी तो नहीं है, लेकिन अब तक पढ़ी इरफ़ान ख़ान की प्रोफाइल में सर्वश्रेष्ठ है। ... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादकइरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और स...

0
यह बात न मैं पहली बार सुन रहा न शायद आप सुन रहे होंगे किआत्महत्या पलायन है.पहली बात तो मैं यह कहना चाहता हूं कि यह जीवन हमने मर्ज़ी से नहीं चुना होता, हमें किन्हीं और लोगों ने अपनी ख़ुशी के लिए जन्माया होता है। जो जीवन हमने चुना ही नहीं, वह पसंद न आने पर ह...

0
आज के इस संस्मरण के साथ विनोद जी ने कहा है कि यह अंतिम कड़ी है। मैं संस्मरण का घोर प्रेमी हूँ, मानता हूँ कि संस्मरण हमें वह बातें समझाते हैं जो साहित्य की किसी अन्य विधा के बस में नहीं है। विनोद जी को और साथ में ख़ुद को कुछ वक़्त का आराम देने की भले सोच सकता...

0
रोम की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामान जाने क्या बात है इटली की स्त्रियाँ बहुत आसानी से मेरी दोस्त बन जाती हैं, उन्होंने मुझे इटली के अद्भुत लैंडस्केप में इतना घुमाया है कि मुझे यह भ्रम होने लगता है कि पुनर्जन्म एक सच्चाई हो न हो पर मेरा इटली, ख़ास तौर पर...

0
कुबेर दत्त और पीने की कुछ अन्य यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामामेक्सिको की चर्चित चितेरी फ्रीडा काल्हो ने कहा था, मैंने अपने दुख दर्द डुबोने के लिए पीना शुरू किया पर कमबख़्त उन सब पीड़ाओं ने तैरना भी सीख लिया। मैंने अपने जीवन में कई पियक्कड़ों का बुरा ह...