आज सुबह जब नींद खुली तो खिड़की से झांक कर देखा. सूरज अपने चरम पर झिलमिल मोड में चमक रहा था. खुश हुए कि आज बड़े दिन बाद सही मौसम है. तैयार होकर जैसे ही बाहर निकले, लगा जैसे करेंट लग गया हो. भाग कर वापस घर में आये और ऐलेक्सा से पूछा कि क्या तापमान है? ऐलेक्सा अभी राजनि...
पोस्ट लेवल : "vyangya"

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कक्षा ६ में मेरा सहपाठी राजू मेरा पड़ोसी बना क्लास में. वो निहायत बदमाश लेकिन चेहरे से एकदम दीन हीन और निरिह सा दिखने वाला. दिन भर तरह तरह की आवाज निकालता और सामने बैठे लड़कों की पीठ पर मेरे पैन से स्याही छिड़क देता. हरी स्याही का पैन सिर्फ मेरे पास था तो वो लड़के समझत...

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भारत में वेलेंटाईन डे का प्रचलन कब से आया यह तो ठीक ठीक पता नहीं. इतना जरुर याद है जब बीस साल पहले भारत छोड़ा था तब तक कम से कम हमारे शहर, जो महानगर तो नहीं था किन्तु फिर भी बड़ा शहर तो था ही, में नहीं आया था. हमारे समय में तो खैर बीबी को भी ’आई लव यू’ बोलने का रिवाज...

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धरना! धरना!! धरना!! आजकल जहाँ सुनो, बस यही सुनाई दे रहा है.वैसे तो नित नये नये धरने कभी जंतर मंतर पर, कभी रामलीला मैदान पर, तो कभी राजघाट पर और कोई जगह न मिले तो कलेक्ट्रेट के सामने, होते ही रहते हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, किसान आदि धरने पर बैठ भी जायें तो भी न तो म...

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तुरुप का पत्ता याने ट्रम्प कार्ड जिसमें किसी भी हाथ को जीतने की क्षमता होती है और सभी कार्डों में सबसे बड़ा माना जाता है.बचपन में जब ताश खेला करते थे और अगर तुरुप का पत्ता हाथ लग जाये, तो क्या कहने. चेहरे पर विश्व विजेता वाले भाव आ जाते थे.शायद इसीलिए इसे ट्रम्प कार...

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व्यंग्य लेख::माया महाठगिनी हम जानीसंजीव*तथाकथित लोकतंत्र का राजनैतिक महापर्व संपन्न हुआ। सत्य नारायण कथा में जिस तरह सत्यनारायण को छोड़कर सब कुछ मिलता है, उसी तरह लोकतंत्र में लोक को छोड़कर सब कुछ प्राप्य है। यहाँ पल-पल 'लोक' का मान-मर्दन करने में निष्णात 'तंत्र की त...

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अगले साल पुस्तक मेले में आने का मन है. उत्साही लेखक विमोचन के लिए आग्रह करेंगे ऐसा मुझे लगता है. ऐसा लगने का कारण अखबार वालों का अब मेरे नाम के साथ ’लेखक कनाडा निवासी वरिष्ट व्यंग्यकार हैं’ लिखना है. नाम के साथ वरिष्ट लगने लगे तो लिखना कम और ज्ञान ज्यादा बांटना चाह...

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भारत एक उत्सव प्रधान देश है और हम पूरे मनोभाव से हर उत्सव मनाते हैं.लोकतंत्र में चुनाव भी एक उत्सव है. प्रति वर्ष यह उत्सव भी भारत वर्ष में कहीं न कहीं किसी न किसी रुप में लगातार मनाया जाता है, चाहे विश्व विद्यालय के हों या पंचायत या निकाय या विधान सभा या फिर लोक स...

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ऐसा कहते हैं कि नेता पैदा होते हैं, बनाये नहीं जाते. कहना ऐसा चाहिये था कि नेता के घर नेता पैदा होते हैं, बाकी के सिर्फ जुगाड़ से बन सकते हैं.क्या ये वैसा ही नहीं है जैसे व्यापारी के घर में व्यापारी पैदा होते हैं. अमीर के घर अमीर. वकील के घर अक्सर वकील, किसान के घर...

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लेख: विधा में व्यंग्य या व्यंग में विधा संजीव व्यंग्य का जन्म समकालिक विद्रूपताओं से जन्मे असंतोष से होता है। व्यंग्य एक अलग विधा है या वह किसी भी विधा के भीतर सार या प्रवृत्ति (स्पिरिट) के रूप में उपस्थित रहता है, या विमर्श का विषय है...